मृगशिर

 मृगशिरा नक्षत्रमृगशिर( 5)

16.जय विजय का वैकुंठ से पतन

17.हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष का जन्म तथा हिरण्याक्ष की दिग्विजय

18.हिरण्याक्ष के साथ वाराह भगवान का युद्ध

19.हिरण्याक्ष का वध

20.ब्रह्मा जी की रची हुई अनेक प्रकार की सृष्टि का वर्णन

21.कर्दम जी की तपस्या और भगवान का वरदान

22.देवहूति के साथ कर्दम प्रजापति का विवाह 

23.कर्दम और देवहूति का विहार।     


स्कंद 3 अध्याय 16 से अध्याय 23 तक।

1. जय विजय का वैकुंठ से पतन

2. हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष का जन्म 3.हिरण्याक्ष के साथ युद्ध 

4.हिरण्याक्ष का वध 

5.सृष्टि का वर्णन 

6.कर्दम जी की तपस्या 

7.देवहुती के साथ विवाह 

8.देवहूति के साथ विहार। 

स्कंद 10, अध्याय87, वेद स्तुति, पांचवी वेद स्तुति। 

मनुष्य ऋषि-मुनियों के द्वारा बतलाई हुई पद्धतियों से उदर आदि स्थानों में जिन का चिंतन करते हैं और जो प्रभु उनके चिंतन करने पर मृत्यु भय का नाश कर देते हैं उन ह्रदयदेश में विराजमान प्रभु कि हम उपासना करते हैं।


18वीं वेद स्तुति ŚB 10.87.18

उदरमुपासते य ऋषिवर्त्मसु कूर्पद‍ृश:

परिसरपद्धतिं हृदयमारुणयो दहरम् ।

तत उदगादनन्त तव धाम शिर: परमं

पुनरिह यत् समेत्य न पतन्ति कृतान्तमुखे ॥ १८ ॥

वेदस्तुति 5





ऋषियों ने आप की प्राप्ति के लिए अनेकों मार्ग माने हैं, उनमें जो स्थूल दृष्टि वाले हैं,वह मणिपुर चक्र में अग्निरूप से आपकी उपासना करते हैं। 


अरुणवंशके ऋषि समस्त नाड़ियों के निकलने के स्थान हृदयमें आपके परमसूक्ष्म स्वरूप दहर ब्रह्म की उपासना करते हैं ।

प्रभु !हृदय से ही आपको प्राप्त करने का श्रेष्ठ मार्ग सुषुम्ना नाड़ी ब्रह्मरंध्र तक गई हुई है। जो पुरुष उस ज्योतिर्मय मार्ग को प्राप्त कर लेता है और उससे ऊपर की ओर बढ़ता है, वह फिर जन्म मृत्यु के चक्कर में नहीं पड़ता।

Text 18: Among the followers of the methods set forth by great sages, those with less refined vision worship the Supreme as present in the region of the abdomen, while the Āruṇis worship Him as present in the heart, in the subtle center from which all the prāṇic channels emanate. From there, O unlimited Lord, these worshipers raise their consciousness upward to the top of the head, where they can perceive You directly. Then, passing through the top of the head toward the supreme destination, they reach that place from which they will never again fall to this world, into the mouth of death.

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