मनुष्य ऋषि-मुनियों के द्वारा बतलाई हुई पद्धतियों से उदर आदि स्थानों में जिन का चिंतन करते हैं और जो प्रभु उनके चिंतन करने पर मृत्यु भय का नाश कर देते हैं उन ह्रदयदेश में विराजमान प्रभु कि हम उपासना करते हैं।
3/18१८-हिरण्याक्षके साथ वराहभगवान्का युद्ध
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CHAPTER EIGHTEEN: The Battle Between Lord Boar and the Demon Hiraṇyākṣa
१६-जय-विजयका वैकुण्ठसे पतन The Two Doorkeepers of Vaikuṇṭha, Jaya and Vijaya, Cursed by the Sages ŚB 3.16.5 यन्नामानि च गृह्णाति लोको भृत्ये कृतागसि । सोऽसाधुवादस्तत्कीर्तिं हन्ति त्वचमिवामय: ॥ सेवकों के अपराध करने पर संसार उनके स्वामीका ही नाम लेता है। वह अपयश उसकी कीर्तिको इस प्रकार दूषित कर देता है, जैसे त्वचा को चर्म रोग।।5।। A wrong act committed by a servant leads people in general to blame his master, just as a spot of white leprosy on any part of the body pollutes all of the skin.5.
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